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  • Jai Barsane wali radhe

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Friday, March 1, 2013

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यादव
यदुवंश का इतिहास जानने के लिए सृष्टि रचना, मनुष्य की उत्पत्ति, सामाजिक संरचना, राजवंशों का उद्भव आदि से अवगत होना आवश्यक है. सृष्टि उत्पत्ति के बारे में मूलतः दो मान्यताएं है, पहला धार्मिक और दूसरा वैज्ञानिक. यहाँ धार्मिक मान्यतायों के आधार पर सरल एवं संक्षिप्त संकलन का प्रयास किया गया है.
पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि सृष्टि रचना से पूर्व केवल स्वयंभू नारायण, पूर्ण परमात्मा, पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर ही थे. भगवन नारायण ने सृष्टि उत्पत्ति कि इच्छा से सबसे पहले जल उत्पन्न किया. जल में अपनी शक्ति का आधान किया. जल में पड़कर वीर्य सहस्त्रों सूर्य के समान देदीप्यमान एक विशाल सुवर्णमय अंडे के रूप में प्रकट हुआ. वह दीर्घकाल तक जल में स्थित था. उसी अंडे से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए. अन्य कई पुत्रो के अलावां ब्रह्मा जी की आँख से अत्री उत्पन्न हुए. अत्री से चंद्रमा उत्पन्न हुए. चंद्रमा और तारा से बुध पैदा हुए. यहाँ से चन्द्र वंश चला. बुध और उनकी पत्नी इला से पुरुरवा उत्पन्न हुए. पुरुवा और उनकी पत्नी उर्वशी से आयु पैदा हुए. आयु और उनकी पत्नी प्रभा से नहुष पैदा हुए. नहुष और उनकी पत्नी विरजा से ययाति उत्पन्न हुए. ययाति और उनकी पत्नी देवयानी से यदु हुए. यदु के बाद यदुवंश अर्थात यादव वंश चला. यदुवंश में यदु की कई पीढ़ियों के बाद वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से सोलह कला संपन्न पूर्ण ब्रह्म यदुकुल शिरोमणी श्रीकृष्ण अवतरित हुए.

जय श्री कृष्णा




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Monday, December 17, 2012

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इन्ही के सहारे जीए जा रहे है,
नाम का अमृत पीए जा रहे हैं।
मेरा बिगड़ा जीवन संवारा ना होता,
तो दुनिया में कोई हमारा ना होता॥




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Saturday, December 15, 2012

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एक बार एक राजा शिकार के उद्देश्य से अपने काफिले के साथ किसी जंगल से गुजर रहा था | दूर दूर तक शिकार नजर नहीं आ रहा था, वे धीरे धीरे घनघोर जंगल में प्रवेश करते गए | अभी कुछ ही दूर गए थे की उन्हें कुछ डाकुओं के छिपने की जगह दिखाई दी | जैसे ही वे उसके पास पहुचें कि पास के पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – ,
” पकड़ो पकड़ो एक राजा आ रहा है इसके पास बहुत सारा सामान है लूटो लूट
ो जल्दी आओ जल्दी आओ |”

तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा की और दौड़ पड़े | डाकुओ को अपनी और आते देख कर राजा और उसके सैनिक दौड़ कर भाग खड़े हुए | भागते-भागते कोसो दूर निकल गए | सामने एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया | कुछ देर सुस्ताने के लिए उस पेड़ के पास चले गए , जैसे ही पेड़ के पास पहुचे कि उस पेड़ पर बैठा तोता बोल पड़ा – आओ राजन हमारे साधू महात्मा की कुटी में आपका स्वागत है | अन्दर आइये पानी पीजिये और विश्राम कर लीजिये | तोते की इस बात को सुनकर राजा हैरत में पड़ गया , और सोचने लगा की एक ही जाति के दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग-अलग कैसे हो सकता है | राजा को कुछ समझ नहीं आ रहा था | वह तो
ते की बात मानकर अन्दर साधू की कुटिया की ओर चला गया, साधू महात्मा को प्रणाम कर उनके समीप बैठ गया और अपनी सारी कहानी सुनाई | और फिर धीरे से पूछा, “ऋषिवर इन दोनों तोतों के व्यवहार में आखिर इतना अंतर क्यों है |”

साधू महात्मा धैर्य से सारी बातें सुनी और बोले ,” ये कुछ नहीं राजन बस संगति का असर है | डाकुओं के साथ रहकर तोता भी डाकुओं की तरह व्यवहार करने लगा है और उनकी ही भाषा बोलने लगा है | अर्थात जो जिस वातावरण में रहता है वह वैसा ही बन जाता है कहने का तात्पर्य यह है कि मूर्ख भी विद्वानों के साथ रहकर विद्वान बन जाता है और अगर विद्वान भी मूर्खों के संगत में रहता है तो उसके अन्दर भी मूर्खता आ जाती है |

शिक्षा - हमें संगती सोच समझ कर करनी चाहिए




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Thursday, December 13, 2012

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गाम के मंदिर में एक बाबा रहता था उसको भगवान पर बहुत विश्वास था.एक बार गाम की नदी में बाढ़ आगई, सब लोग जाने लगे, लोगो ने बाबा को भी चलने के लिए कहा लेकिन बाबा नहीं गया वो बोला की मै भगवान को छोड़ कर नहीं जाउगा, मेरी रक्षा तो खुद भगवान करेगे, लोग चले गए, पानी और बढ गया, सेना के लोग नाव लेकर आये बाब को कहा चलने को बाबा नहीं गया.पानी मंदिर में भर ने लगा, हलिकोप्टर से कुछ लोग आये कहा बाबा अब तो चलो बाबा नहीं गया. कहने लगा की मेरी रक्षा के लिए भगवान है, पानी और बढ़ गया बाबा डूब कर मर गया वो भगवान के सामने आया, बाबा ने कहा की मैंने तेरी सेवा में जीवन लगा दिया और तू मुझे बचाने भी नहीं आया. तब भगवान ने मुस्करा कर कहा- "अरे मुर्ख,! जो गाव वाले आये थे वो में ही था, जो नाव लेकर आये थे वो भी मेही था, जो हलिकोप्टर लेकर आया वो भी मै था. लेकिन तुने मुझे नहीं पहचाना तो क्या फायदा है तेरी इस दिखावटी सेवा का." ( भगबान हर जगह है बस उसको पहचान ने की जरुरत है, आप जब किसी दुखी और गरीब को देखे तो मुह न फेरे ये देखे की उस रूप में भगवान आप की परीक्षा लेने तो नहीं आये.आप सब की मदद करे इश्वर आप की मदद के लिए हर जगह हर समय विद्यमान है..
जय श्री कृष्ण!!




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एक विद्वान् संत को आदत थी हर बात पे ये कहने की --नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! उनके चेलों को बड़ा अजीब लगता था हर अच्छे काम व् बुरे काम पे ये कहना !! उनको चिड होती थी !! एक दिन महात्मा तुलसी का पौधा लगाने के लिए खुरपे से ज़मीन खोद रहे थे की खुरपा उनकी उंगलीओं पर लग गया खूब खून बहने लगा !! उनके चेलों ने जखम धो कर पट्टी बाँधी !! संत बार बार बोल रहे थे नार
ायण न
ारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!चेले कह रहे थे क्या ये अच्छा हुआ की आपकी ऊँगली कट गयी ???
अगले दिन गुरु जी एक ख़ास शिष्य के साथ जंगल के अन्दर बने माँ काली के मदिर मे दर्शन के लिए निकल पड़े !! शिष्य भी साथ था दोपहर हुई तो गुरूजी ने कहा प्यास लगी होगी तुमको जाओ थोडा जल ले आओ हम इस पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं !! शिष्य पानी लेने निकला तो रास्ता भूल गया !! शाम हो गयी !! शिष्य को रास्ता न मिला गुरूजी वहीँ उसका इंतज़ार कर रहे थे !! तबी वहीँ एक जंगली आदिवासी लोगों का झुण्ड ढोल नगारे बजा कर वहाँ आ पहुंचा उन्होंने विद
्वान् संत को पकड लिया व् ख़ुशी से नाचते गाते उनको बाँध कर लेकर चल पड़े !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!वो उनको काली मंदिर ले गए व् उनको बोले की हम हर साल माँ कलि को मनुष्य की बलि देते है !! सुबह आपकी बलि देंगे व् आपका रक्त माँ काली भोग लगा लेंगी !! सारी रात उनको बाँध के रक्खा !! उधर शिष्य सारी रात जंगले मे डरा सहमा बैठा रहा व् गालिआं निकालता रहा भगवान् को की तू बेरहम है तू दया नहीं करता आदि !! सुबह हुई संत को बोला स्नान कर के आओ ये काला चोला पहनो आपकी बलि देंगे !! संत तय्यार हुए व् माँ के आगे आ कर बैठ गए !!चेहरे पर कोई शिकन नहीं !!संत बार बार बोल रहे थे नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आदिवासी जल्लाद बोला आप साष्टांग प्रणाम की मुद्रा मे लेट जाओ वो लेट गए !! वो बोला अपने दोनों हाथ जोड़ करमाँ काली को प्रणाम करो !!संत ने दोनों हाथ ऊपर उठाये व् फिर बोले -- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!जल्लाद गुस्से से बोल पड़ा ---ये किसको पकड़ लाये तुम इसका तो अंग भंग हुआ है इसकी बलि नहीं दी जा सकती माँ रुष्ट हो जायेगी !!उन्होंने संत को धक्के मार कर बाहर निकाल दिया मंदिर से !!
संत वापिस आ रहे थे की शिष्य उनको मिल गया !!उसने बताया की मै रास्ता भूल गया था बहुत बुरी रात कटी !! संत ने उसको बताया की आज कैसे भगवान् ने जो किया अच्छा किया !!मेरी जान आदिवासी लोगों ने बक्श दी !!अगर मेरी ऊँगली ना कटी होती तो मेरी बलि दे दी जाती !! शिष्य बोला चलो वो तो जो अच्छा हुआ ठीक है पर मेरा रास्ता भूल जाना कैसे अच्छा हुआ ???? संत बोले -- प्यारे अगर तू मेरे साथ होता तो मुझे छोड़ दिया जाते पर तू तो पक्का बलि चढ़ जाता क्योंकि तेरा तो कोई अंग भंग नहीं हुआ था !! इसलिए हमेशा उस परमात्मा की राजा मे ही राज़ी रहा करो और बोलो-- नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !! अब तो शिष्य भी बोलने लगा नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!आप सब भी बोला करो -नारायण नारायण प्रभु तेरा शुक्रिया है तू जो करता है अच्छा ही करता है !!नारायण!! नारायण!!नारायण !!नारायण!!
एक संत के श्रीमुख से ...................




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Thursday, August 9, 2012

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कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है । श्रीमद्भागवत* के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था । गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली ( परम रासस्थली ) के निकट था । अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे । सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु ...............




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सभी दृष्टि से कृष्ण पूर्णावतार हैं। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है। 

जब-जब भी धर्म का पतन हुआ है और धरती पर असुरों के अत्याचार बढ़े हैं तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। 

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्यरात्रि कअत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था।...........




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  • भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेशश्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया।
  • कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये।
  • समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
  • अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी।
  • सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।
  • उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है




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आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाए........
दीपक यादव॥



कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।




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Wednesday, May 23, 2012

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मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो, छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो ॥
यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो ।
'सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो ॥

By ---Deepak Yadav




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Sunday, April 29, 2012

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कृपया इसे एक बार अंत तक अवश्य पड़ें ! और शेयर करें ताकि यह अमूल्य जानकारी सब पहुंचे ! और सबको समझ आ जाए की हिन्दू धर्मं क्या है !!

इस कलिकाल में 'श्रीमद्भागवत पुराण' हिन्दू समाज का सर्वाधिक आदरणीय पुराण है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है। इसे भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अधिक समीचीन होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा हैं।

इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। 'श्रीमद्भागवत पुराण' वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है।

*************सृष्टि-उत्पत्ति***************

सृष्टि-उत्पत्ति के सन्दर्भ में इस पुराण में कहा गया है- एकोऽहम्बहुस्यामि। अर्थात् एक से बहुत होने की इच्छा के फलस्वरूप भगवान स्वयं अपनी माया से अपने स्वरूप में काल, कर्म और स्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं। तब काल से तीनों गुणों- सत्व, रज और तम में क्षोभ उत्पन्न होता है तथा स्वभाव उस क्षोभ को रूपान्तरित कर देता है। तब कर्म गुणों के महत्त्व को जन्म देता है जो क्रमश: अहंकार, आकाश, वायु तेज, जल, पृथ्वी, मन, इन्द्रियाँ और सत्व में परिवर्तित हो जाते हैं। इन सभी के परस्पर मिलने से व्यष्टि-समष्टि रूप पिंड और ब्रह्माण्ड की रचना होती है। यह ब्रह्माण्ड रूपी अण्डां एक हज़ार वर्ष तक ऐसे ही पड़ा रहा। फिर भगवान ने उसमें से सहस्त्र मुख और अंगों वाले विराट पुरुष को प्रकट किया। उस विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए।

विराट पुरुष रूपी नर से उत्पन्न होने के कारण जल को 'नार' कहा गया। यह नार ही बाद में 'नारायण' कहलाया। कुल दस प्रकार की सृष्टियाँ बताई गई हैं। महत्तत्व, अहंकार, तन्मात्र, इन्दियाँ, इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव 'मन' और अविद्या- ये छह प्राकृत सृष्टियाँ हैं। इनके अलावा चार विकृत सृष्टियाँ हैं, जिनमें स्थावर वृक्ष, पशु-पक्षी, मनुष्य और देव आते हैं।

**************काल गणना***************

'श्रीमद्भागवत पुराण' में काल गणना भी अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। वस्तु के सूक्ष्मतम स्वरूप को 'परमाणु' कहते हैं। दो परमाणुओं से एक 'अणु' और तीन अणुओं से मिलकर एक 'त्रसरेणु' बनता है। तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य किरणों को जितना समय लगता है, उसे 'त्रुटि' कहते हैं। त्रुटि का सौ गुना 'कालवेध' होता है और तीन कालवेध का एक 'लव' होता है। तीन लव का एक 'निमेष', तीन निमेष का एक 'क्षण' तथा पाँच क्षणों का एक 'काष्टा' होता है। पन्द्रह काष्टा का एक 'लघु', पन्द्रह लघुओं की एक 'नाड़िका' अथवा 'दण्ड' तथा दो नाड़िका या दण्डों का एक 'मुहूर्त' होता है। छह मुहूर्त का एक 'प्रहर' अथवा 'याम' होता है।

युग वर्ष
सत युग चार हज़ार आठ सौ
त्रेता युग तीन हज़ार छह सौ
द्वापर युग दो हज़ार चार सौ
कलि युग एक हज़ार दो सौ

प्रत्येक मनु 7,16,114 चतुर्युगों तक अधिकारी रहता है। ब्रह्मा के एक 'कल्प' में चौदह मनु होते हैं। यह ब्रह्मा की प्रतिदिन की सृष्टि है। सोलह विकारों (प्रकृति, महत्तत्व, अहंकार, पाँच तन्मात्रांए, दो प्रकार की इन्द्रियाँ, मन और पंचभूत) से बना यह ब्रह्माण्डकोश भीतर से पचास करोड़ योजन विस्तार वाला है। उसके ऊपर दस-दस आवरण हैं। ऐसी करोड़ों ब्रह्माण्ड राशियाँ, जिस ब्रह्माण्ड में परमाणु रूप में दिखाई देती हैं, वही परमात्मा का परमधाम है। इस प्रकार पुराणकार ने ईश्वर की महत्ता, काल की महानता और उसकी तुलना में चराचर पदार्थ अथवा जीव की अत्यल्पता का विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है।




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जिस प्रकार जिस व्यक्ति को अपनी भूख मिटानी होती हँ तो उसका खाना बनाने की किताब पढने मात्र से काम नहीं चलता 
उसे खाना बनाने की क्रिया करनी पड़ती हँ 
उसी प्रकार जिस व्यक्ति को भगवत प्राप्ति, भगवद दर्शन करना हँ तो उसका शास्त्रों को पढना मात्र काम नहीं देगा 
शास्त्रों के अनुसार या गुरु के बताये अनुसार साधना करनी पड़ेगी तभी लक्ष्य हासिल होगा.........




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इश्क दरिया हँ जिसका साहिल नहीं होता ............
हर दिल मोहब्बत के काबिल नहीं होता ................
रोता वो भी हँ जो डूबा हँ श्याम तेरे इश्क में ...............
और रोता वो भी हँ जिसे ये नसीब नहीं होता .
........................






By----http://about.me/deepakyadhuvansi




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Sunday, March 4, 2012

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होली उत्तर भारत का एक लोकप्रिय लोकगीत है। इसमें होली खेलने का वर्णन होता है। यह हिंदी के अतिरिक्त राजस्थानीपहाड़ीबिहारीबंगाली आदि अनेक प्रदेशों की अनेक बोलियों में गाया जाता है। इसमें देवी देवताओं के होली खेलने से अलग अलग शहरों में लोगों के होली खेलने का वर्णन होता है। देवी देवताओं में राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं।इसके अतिरिक्त होली की विभिन्न रस्मों की वर्णन भी होली में मिलता है




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आप सभी यदुवंशी दोस्तों को होली कि हर्दिक शुभकामनाये .........




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आप सभी यदुवंशी दोस्तों को होली कि हर्दिक शुभकामनाये .........




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Holi is an ancient festival of India and was originally known as 'Holika'. The festivals finds a detailed description in early religious works such as Jaimini's Purvamimamsa-Sutras and Kathaka-Grhya-Sutras. Historians also believe that Holi was celebrated by all Aryans but more so in the Eastern part of India. 

It is said that Holi existed several centuries before Christ. However, the meaning of the festival is believed to have changed over the years. Earlier it was a special rite performed by married women for the happiness and well-being of their families and the full moon (Raka) was worshiped. 





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Wednesday, February 29, 2012

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(यदुवंशी)      plz join yadhuvansi on facebook    




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Tuesday, February 21, 2012

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एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा, 'मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो। जो यहां हो वहां नहीं, दूसरा- वहां हो यहां नहीं, तीसरा- जो यहां भी नहीं हो और वहां भी न हो, चौथा- जो यहां भी हो और वहां भी।'

मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'




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jai shree ram




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